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एसा विचार करति हुइ कितनेक समय राजाका छेद्र देखती रहीं परन्तु एसा मोखा ही नमोला तब राणी अपने पुत्र सुरिकान्तको बोलवाके सर्व वात कही कि अगर म्है और तुं दोनों मीलके राजाकों मार देवे तो तेरेको राज म्है देदुगी । यह बात कुमर सुनि तो खरी परन्तु इस बात का आदर न किया मनमे मली भी न समझी
और वहांसे उठके चला गया। पीच्छे राणीने विचार किया कि यह पुत्र न जाने अपना पिताको केह देगा तो मेरी सब बात राजा जान लेगा वास्ते मुझे कोई उपाय कर राजाकों विष देना ही उचित है। ___इस समय राजा छट छट पारणा करता था जिस्मे बारह छट हो गया था और तेरवा छेटका पारण था उन्ही समय सूरिकान्ना राणी पारणेकि आमंत्रण करके विषयुक्त भोजन खीला दीया वस स्वस ही समयमें राजाके शरीरमें विषका विस्तार होने लगा राजाने जान लिया कि यह सब मेरे किया हुवा कर्मही उदय हुवा है भलो यह राणी तों विष प्रयोगसे एक मेराही प्राणोंका नाश करती है परंतु मेने तो बहुतसे प्राणोंका नाश किया है वास्ते सम परिणामोंसे ही सहन करना उचित है ऐमा विचारके आप तृणके संस्थारे पर बेठके श्री सिद्ध भगवानको नमस्कार किया. और आपने धर्माचार्य श्री केशीश्रमण भगवानकों भी नमस्कार किया अर्थात् वंदन नमस्कार कीया तत्पश्चात् आठारा पापस्थानकि आलोचन करके सर्व प्रकारसे १८ पापस्थान और च्यार प्रकारे आहारका त्याग करके समाधि पूर्वक चरम श्वासोश्वास और नाश मान शरीरको त्यागन करता हूवा अन्तमें कालधर्मको प्राप्त हवा।