Book Title: Shighra Bodh Part 11 To 15
Author(s): Gyansundar
Publisher: Ratna Prabhakar Gyan Pushpmala

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Page 449
________________ समय रोहा मुनिको प्रश्न उत्पन्न हूवा । तब भगवान के पाप्त आके नम्रता पूर्वक बन्दन नमस्कार कर प्रश्न करता हूवा कि (प्र०) हे भगवान ! पेहला लौक और पीच्छे अलोक हवा पाकि पेहला अलोक और पीच्छे लोक हवा था ! (उ०) हे रोहा ! जिस पदार्थकी आदि और अन्त नहीं तो उसको पहिले और पीच्छे कैसे कहा जाय । इसी माफीक लौका लौककी भी आदि अन्त नहीं है वास्ते पेहले या पीछे नहीं कह शक्ते । परन्तु दोनों सास्वते हैं। क्योंकि आकाश सास्वता है. और आकाशके साथ धर्मास्तिकाय, अधर्मास्तिकाय, जीवास्तिकाय, पुद्गलास्तिकाय और काल यह पांचों द्रव्य है इन्हींको लोक कहते हैं और जहांपर केवल आकाश द्रव्य ही है वह अलौक कहा जाता है । जब आकाश सास्वता है तब आकाशके अन्दर रेहने वाले पांचों द्रव्य भी सास्यते हैं इस्में भी द्रव्यास्सिकमयकि अपेक्षा सास्वत है और पर्यायास्ति नयकि अपेक्षा जो अगुरु लघु पर्याय है वह असास्वत है और लोकमें जो भकतम पदार्थ है वह द्रव्या-- पेक्षा सास्वत है क्योंकी इस लोकको किसीने बनाया नहीं और इसका विनास भी कबी होगा नहीं। और मो कृतम पदार्थ है. उसकी आदि भी है और अन्त भी है। इस वास्ते यह लोकालोक सास्वत पदार्थ है। . (प्र०) हे भगवान् ! पहेला जीव और पीछे अनीव हुवा है ... कि पेहला अजीव और पीछे जीव हुका है ? (उ०) हे रोहा ! 'जीव और अनीव यह दोनों सास्वते पदार्थ हैं क्योंकि जीव और मनोव अनादि कासे लोक व्यापक

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