Book Title: Shighra Bodh Part 11 To 15
Author(s): Gyansundar
Publisher: Ratna Prabhakar Gyan Pushpmala

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Page 445
________________ न्याको बड़ ही आडम्बके साथ केशी स्वामिकों वंदन कस्मेको माया इसीसे बहुतसे अन्य लोकोंको भी धर्मपर श्रद्धा हुई भावानकों कन्दन नमस्कार कर भगवान कि मुधारस देशनाका पालकर पीच्छा जाने लगा, इतनेमें केशीस्वामि बोलकि हे राजन रमणीकका अरमणीक न होना ? प्रदेशी राजा बोला कि हे भगवान रमणीक और भरमगोक किसकों केहते है ? हे राजन जेसे कोई करसानिका क्षेत्र खलामें भनाज पकता है उन्ही समय बहुतसे पशु पंखो और मनुष्य याचक आदिके आने जानेसे बह खेतखला अच्छा रमणीक होता है जब अनाजादि करसानी लोक अपने घरपर ले जाते है फीर उन्हीं क्षेत्रखलामें कोई भी नही आता नही जाता उन्ही समय वह क्षेत्रखला अरमणीक हो जाता है। इसी माफीक क्षुक्षेत्र इसी माकीक उद्यान भी समझना और नाटिकशाला भी समझना तात्पर्य यह है कि हे राजन म्है यहापर हु वहां तक तुम धर्म पर अच्छी श्रद्धा और मेरी सेवा भक्ति करते है यह तुमारा रमणीकपया है परन्तु मेरे चलेजानेपर यह धर्म भावना छोड़ दोगे तो मरमणीक हो जावोगे वास्ते मैं आपकों केहता हूँ कि मेरे चले जानेपर अरमणीक न होना अर्थात् धर्मभावनाको छोडना नहीं । बराबर धर्मकार्य शासनकार्य आत्मकार्य हमेशके लिये करते रहना - प्रदेशी राजा बोला कि हे भगवान इस बातकि आप खातरी रखो ' में रमणीकका अरमणीक कवी नही होवुगा हे भगवान् मेरे श्वेतांनिगरोके आश्रित ७००० । ग्राम है जिन्हीकि नाकाबानी दाश ) मेरे रानभोवर और शैन्यादिकके उपभोगमें लगनेके

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