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करते हुवे मुनि बन्दन कर आकाश मार्ग गमन करते हुवा श्रीनमिरानऋषि प्रत्यक बुद्धि तप संयमादि पाराधन कर जन्म भरा मरण रोग शोक मीटाके अन्तिम श्वासोश्वासको छोड़के लोकायामागमे सास्वता सुखों में विराजमान हो गये। शम् .
प्रश्नोत्तर नम्बर ३ सत्र श्री उत्तराध्यायनजी अध्य० २३
( केशी गौतमके प्रश्नोत्तर) तेवीसवा तीर्थकर श्री पार्श्वनाथनीके संतानीक अनेकगुणाकत अवधिज्ञान संयुक्त केशीश्रमण भगवान बहूतसे शिष्यमंडलके परिवारसे भूमंडलकों पवित्र करते हुवे सावत्थी नगरीके वंदुरूवन उद्यानमें समौसरन करता हूवा अर्थात् उद्यानमे पधारे । ... चरम तीर्थकर भगवान वीर प्रभुके जेष्ट शिष्य इन्द्रभूति “गौतमस्वामि" अनगार अनेक गुणोलंकृत च्यारज्ञान चौदा पूर्व धारक बहुतसे शिप्यमंडलके परिवारसे पृथ्वीमंडलको पवित्र करते हले सावत्थी नगरीके कोष्टक नामके उद्यानमें समौसरण करते हूवे-ठेर है. . दोनों महापुरुषों के शिष्य समुदाय बड़े ही भद्रक और विनयवान से शालके वृक्ष के परिवार भी चालका ही होते है। एक समय दोनों भगवन्तोंके शिष्य एकत्र होनेसे यह शंका उत्पन्न हुई कि की पार्श्वनाथ प्रभुः भौर श्री बीर भगवान दोनों परमेघरोंने एकही काला (मोक्षका) यह धर्म फरमाया हे तो फीर यह प्रत्यक्षमें इतना पातायु मो कि पार्श्वनाथ प्रमुके शिष्योंक च्यार महाव्रत