Book Title: Shighra Bodh Part 11 To 15
Author(s): Gyansundar
Publisher: Ratna Prabhakar Gyan Pushpmala

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Page 406
________________ (३२) सुवर्णमय मेरुपर्वत बनाके दे देवे तथा सर्व पृथ्वी सुवर्णमया करके दे दे तो भी उन्ही लोभी पुरुषकी तृष्णा कवी शान्त न होगी कारण लोकमे द्रय तो असंख्यावों है और जीवोंकी तृष्णा आकार शसे भी अनन्त है । है-ब्रह्मदेव केवल धनही नहीं बल्के इन्ही मारापार पृथ्वीकों सुवर्णकि बनाके अन्दर शालीगोधम जवज्वार झांसी सुवर्ण चान्दी आदि लोभानन्दको देदी जावे तो भी शान्त होना असंभव है परन्तु ज्ञानी पुरुषों तो इन्हीं नाश भय तृष्णाको एक महान् दुःखका खनाना समझके परीत्याग किया है वह ही परम सुख विलासी हुआ है वास्ते मुजे खनावा भरनेकि जरूर नहीं है । मेरा खजाना भरा हूवा है। (१०) प्रश्न हे भोगेन्द्र यह प्रत्यक्ष भोग विलास रान अन्तेवर (स्त्रियों ) आदि सब देवत के माफीक ऋद्धि आपको मोली है इन्होंको तो आप त्याग न करते है और मवांतरमें अधिक सुखोंकि ममिलाषा रखते है यह ठीक नहीं है अगर आगे न मीलने पर आपको और संकल्प विकल्प तो करना न पडेगा यह भी विचार आपको पहला करना चाहिये अर्थात् यह मीले हुवे काम भोगको भोगवो फिर दीक्षा लेना के दोनों भोगोंको अधिकारी बना सकेंगे। (उत्तर ) हे विप्र-यह मनुष्य संबन्धी काम मोग देखनेमे सुन्दर देखाइ देता है परन्तु परिणामसे शल्य सादृश है विष माइश है असीविषसर्प सादृश है किंपाकके फल साढश है भोग मोगवति पर अच्छा. लगता है परन्तु अब उन्हों भोगसे कर्म क्या है वह उदय होता है तब महान दुःख नरक निगोदमे

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