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(४८) संकृत कार्य किया कि जिन्होंसे प्रभावके यह देवता संबन्धी महान् ऋद्धि ज्योति क्रन्तीकों प्राप्त हुवा है इस पर भगवान फरमाते हैं कि हे गौतम ! एकाग्रचित्त कर सुनो। इन्हीं जम्बुद्विपके. मरतक्षेत्रमें केकह नामका हा निनपद देशमें श्वेनाम्बिका नामकी नगरी थी धनधान्य मनुष्यों कर अच्छी शोभनिक होनेसे अमरापुरकी औपमा दी जाती थी उन्ही नगरीके बाहर मृगवन उद्यान
वह मी वृक्ष लत्ता वेल्लि फल पुष्प और निर्मल जलसे परीपूर्ण भरा हुवा होद वापीकर अच्छा सुन्दर मनोहर था। उन्ही श्वेता मिका नगरके अन्दर अधर्मका अन्तेवासी नास्तिक शिरोमणि एसा प्रदेशी नामका राना था और रानाके सूरिक्रन्ता नामकी राणी थी वह राजाकों परमवल्लभ थी उन्ही राणीके अंग जात और प्रदेशी रामाका पुत्र सुरिकान्त नामका रामकुमर था वह कुमर राजकार्य चलाने में बड़ा ही कुशल था। रामा प्रदेशीके चित्त नामका प्रधान था वह च्यारों बुद्धियोंमें बड़ा ही निपुण था और राजके कार्य करनमें अच्छी सलाह देने में दुसरे राजावों के साथ व्यवहार चलाने में दीर्घदृष्टीवाला था।
एक समय राजा प्रदेशीके सावत्थी नगरीका जयशत्रु राजाके साथ कुच्छ कार्य होनेसे चित्त नामका स्वप्रधानकों बोलाके आदेश करता हुवा कि हे चित्त प्रधान आप सावत्यी नगरीका जयशत्रु रामा पास भावों और यह मैटणा हमारी तर्फसे देके यह कार्य पर पीच्छे अलदिसे मावों, चित्त नामका प्रधान अपने मालक (राजा) कि माशाको सनिय शिरपर चडाके राज प्रदेशीके दीये हुवे भेटणोकी और फराब हुने पावन स्वीकार कर अपने स्वान