Book Title: Shighra Bodh Part 11 To 15
Author(s): Gyansundar
Publisher: Ratna Prabhakar Gyan Pushpmala

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Page 429
________________ इस्में मुझे केवल ज्ञान छोडके शेष च्यार ज्ञान है उस्मे मनः पर्यव ज्ञानद्वार मैं तुमारे मनकि सर्व वातों जानी है। ... राजा प्रदेशी बोला हे भगवान मैं यहा पर बेठु ? .. . केशीश्रमण बोले हे राजन् यह वगेचा तुमारा ही है। ... राजा प्रदेशीके दीलमे यहतो निश्चय हो गया कि यह कोई चमत्कारी महात्मा है अब ठीक स्थान पर बेठके राजा बोला कि हे भगवान आपकि यह श्रद्धा द्रीष्टी प्रज्ञा और मान्यता है कि जीव और शरीर अलग अलग है ? हे राजन् हमारी श्रद्धा यावत् मान्यता है कि जीव और शरीर जुदे जुदे है और इस बातको हम ठोक तौर पर सिद्ध कर शक्ते है । प्रदेशी गना बोला कि अगर आपकी यह ही श्रद्धा मान्यता हो तो मैं आपसे कुच्छ प्रश्न करना चाहता हुं ? हे राजन् जेसी आपकी मरजी हो ऐसा ही करिये । (१) प्रश्न-हे भगवान मेरी दादीजी हमेशोंके लिये धर्म पालन करती थी और उन्होंकी मान्यता भी थो कि जीव और शरीर जुदा जुदा है हो आपके मान्यतासे धर्म करनेवाले देव लोकमें देवता होना चाहिये और मेरे दादनी भी देवतोंमें ही गये होगेअगर मेरे दादनी देवलोकसे आके मुझे केहे कि हे वत्स मैं धर्म करके देवावतार लिया हूं वास्ते तुं भी इस अधर्मकों छोडके धर्मकर तांके दुःखसे बचके देवतावोंका सुख मीलेगा हे महाराज एसा मुझे आके केहदेवें तों मैं आपका केहना सच समझु कि हमारे दादोजीका शरीरतों यहा पर रहा और जीव देवतोंमें गया इस लिये जीव रीर. अलग अलग है अगर मेरे दादीजी एसा न कहे तो मेरे

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