Book Title: Shighra Bodh Part 11 To 15
Author(s): Gyansundar
Publisher: Ratna Prabhakar Gyan Pushpmala

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Page 431
________________ (३) तत्कालका उत्पन्न हुवा देवतावोंक आज्ञाकारी देव देवीयों एक नाटिक करते हे उन्हीकों देखनेमे लग जाते है वह सुखपूर्वक देखनेवालोको ज्ञात होता है कि महुर्त मात्रका नाटिक है परन्तु यहाँ २००० वर्ष क्षीण हो जाते है वास्ते देवता आ नही शक्ते है। () तत्कालके उत्पन्न हुवा देवतावों मनुष्य लोकमे आना चाहे परन्तु मृत्यु लोक कि दुर्गन्ध ४००-५०० योजन ऊर्ध्व आती है वास्ते दुर्गधके मारे देवता यहां पर आ नही शक्ता है। वास्ते हे राजन् तूं इस वातकों स्वीकार करले की जीव और शरीर भिन्न भिन्न है। __(२) प्रश्न हे भगवान् आपने यह युक्ति तो ठीक मीलादि परंतु मेरे दादाजी मेरे माफीक बडे ही अधर्मी थे लोहीसे हाथ हमेशों लीप्त ही रहते थे जीव मारनेमे कीसी प्रकार कि घणा नही लाते थे वह आपकि मान्यता माफीकतों नरकमे ही गये होगे हे भगवान् अगर मेरे दादाजी नरकसे आके मुझे केहदे कि हे वत्स मेने वहुतसे अधर्म किये थे वास्ते नरकमे दुःख देख रहा हु परन्तु अब तुम अधर्म न करना अगर अधर्म करोगे तो मेरे माफीक तुम भी नरकमें दुःख देखोंगे एसा आके मेरा दादनी मुझे कहेतों मैं आपकि वातको सच मानु नही तों मेरी मानी ठीक है ? . - (उत्तर) हे राजन् आपकि परम वल्लमा सूरिकन्ता नामकि राणो है उन्होंके साथ कोई लंपट पुरुष काम भोग सेवन करता • होतो तु उस लंपटकों क्या दंड करेगा ? हे भगवान् उस लंपटको मैं मारू पीटू केद करूं । हे राजन् अगर वह लंपट कहे कि मजे क्षण. मात्र छोडतों मैं मेरे पुत्रादिसे मील आउ तो तुम

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