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दिया और सर्व छेद्रको बन्ध कर दिये फीर कितनेक समयके बाद कोटीकों देखा तो एक भी छेद्र नहीं हूवा कोटीको खोलके देखा तो अन्दर हजारों जीव नये पेदा हो गये। हे भगवन् जब कोटीके छेद्र नहीं हुवे तो जीव काहासे आये इसी वास्तें मेरा ही मानना ठीक है कि जीव और काया एक ही है।
(उ) हे राजन् आपने अग्निमें तपाया हुवो एक लोहाका गोलेकों देखा है ? हां प्रभो मैंने देखा है। हे राजन् उन्हीं लोहोका गोलेके अन्दर अग्नि प्रवेश होती है ? हां दयाल प्रवेश होती है। हे राजन् क्या अग्नि प्रवेश होनेसे लोहाका गोलेके छेद्र ही होता है ? नहीं भगवन् छेद्र नहीं होता है। हे राजन् जब यह बादर अग्नि लोह गोलाके अन्दर प्रवेश हो जानेपर भी छेद्र नहीं हूवे तो जीव तो अरूपी सुक्षम है उन्हींको लोहाकी कोटीमें प्रवेश होते छेद्र काहाशे होवे वास्ते समझके मान ले जीव काया जुदी जुदी है। .
(५) हे स्वामीन आप यह बात मानते हो कि सर्व जीव अनन्त शक्तिवाले है ? हां राजन् सर्व जीव अनन्त शक्तिवान् है। तो हे भगवान एक युक्क पुरुष जीतना वजन उठा सके इतनाही वमन वृद्ध क्युं नही उठा शक्ता है । अगर युवक और वृद्ध दोनों बराबर वजन उठा शके तो म्हें आपका केहना मानु, नही तो मेरा ही माना हुवा ठीक है ?
(उत्तर) हे महीपाल-जीवों अनन्त शक्तिवान् है परन्तु कर्मरूपी औषधीसे वह शक्तियों दख रही है अब औषधी (कर्म) बीलकुल दूर हो जायेंगे तप अनन्त शक्ति अर्थात् मात्म वीर्य