________________
(५३) राजाको सुनाइये ! इतना केहके कदन कर चित प्रधान अपने स्थान गया।
एक समय वह च्यार अधोंसे स्थ तैयार कर मंगलमें घूमनेके नामसे राजा प्रदेशीकों चित्त जंगलमें ले आया इधर उधर स्थकों फीराते बहुत टैम हो जानेसे राजाका जीव घबराने लग गया, तब प्रधानसे राजाने कहा कि हे चित्त स्थको पीछा फोरालों धूपसे मेरा जीव धबराता है अगर यहां नजीकमें शीतल छाया हो तो वहांपर चलों इतनेमें चित्त प्रधान बोला महारान यह नजिकमें अपना उद्यान है वहां पर अच्छी शीतल छाया है । प्रदेशी राजाने कहा कि एसा हो तो वहां ही चलो। इतनेमें प्रधानजीने रथकों सीधा ही जहां पर केशीश्रमण भगचान विराजते थे । उन्होंके पासमें प्रदेशी राजाकों ले आये एक मकांनमें रानाको ठेरा दिया। श्रम दुर हो जानेपर रानाने दृष्टि पसार किया तो उदर केशोश्रमण भगवान विस्तारवाली परिषदां को धर्मदेशना दे रहे थे। उन्होंको देखके प्रदेशी राजा बोला हे चित्त यह जड मूंद कोन है और इन्हों कि सेवा करनेवाले इतने जडमूंड काहासे एकत्र हुवे है ।
चित्त प्रधान बोला है नराधिप यह जैन मुनि है। धर्म देशना दे रहे है। इन्होंकि मान्यता है कि जीव और काया भिन्न भिन्न है। इसपर प्रदेशी राजा बोला है चित्त क्या यह साधु अच्छे लिखे पढे है अपनेकों वहां पर जाने योग्य है अर्थात् अपने प्रश्न करे तो वह उत्तर देवेगा।