________________
(१०) अधिक भव करे तो मी १५ भवोंसे ज्यादा नही करे इत्यादि देशनादी जिस्मे कीसने दीक्षा कीसीने श्रावक व्रत लेके अपने आने *स्थान गये। . चित्त प्रधान व्याख्यान श्रवण करके बड़ा आनंदीत हुवा
और गुरू महाराजके पाप्त श्रावकके १९ व्रत धारण किये। कितनेक रोज रेहनेपर प्रदेशी राजाका कार्य होजानेसे जयशत्रु राज प्रेमदर्शक भेटणा तैयार कर चित्त प्रधानको कार्य हो जानेका समाचार कहेके वह भेटणा देके रमा देता हुवा । चित्त प्रधान रवानेकि तैयार करके भगवान केशीश्रमणके पासमे अ या अपने रवाने होनेका अभिप्राय दर्शाते हुवे भगवानसे श्वेताम्बिका पधारनेकि विनती करी कि हे भगवान आप श्वेताम्बिका पधारों इसपर गुरु महाराजने पुर्ण ध्यान न दीया तब दूसरी तीसरीवार और मी विनती करी ! तब केशी भगवान बोले कि हे चित्त प्रधान तु जानता है कि एक अच्छा सुन्दर बन हो और उन्हीमे मधुर फलादि पाणी भी हो परन्तु उन्ही वनके अन्दर एक पारधी रेहता हो तो वनचर या खेचर जानवर आशक्ता है ? नही आवे, इसी माफोक तुमारे श्वेताम्बिका नगरी अच्छी साध्वादिके आने योग्य है परन्तु वहा नास्तिक प्रदेशी राना पारधि तुल्य है वास्ते साधुवोंका माना केसे बन शक्ता है।
नम्रतापूर्वक चित्त प्रधान बोला कि हे भगवान आपकों प्रदेशी राजासे क्या मतलब है श्वेताम्बिका नगरीमें बहुतसे लौक घनाम बसते है और बडेही श्रद्धावान है हे भगवान आप पधारो भापकों बहुतसा मसानपान खादीम स्वादिम वस्त्र पात्र पाट पटका
.
.