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किसी पदार्थ पर ममत्व भाव नहीं रखना तो फिर स्त्रितों ममत्व mani एक सीवर बन्ध प्रासाद ही है वास्ते स्त्रिकों और परिग्रहकों एक ही व्रतमें माना गया है। हे भगवान् इस्मे किंचत ही आश्चर्यकि बात नहीं है दोनों भगवानोंका वेय तो एक ही है । यह उत्तर श्रवण करके परिषदाकों बड़ा ही संतोष हुवा था !
यह उत्तर श्रवण करके भगवान् केशीश्रमण बोले कि हे गौतम इस शंकाका समाधान आपने अच्छा किया परन्तु एक प्रश्न मुझे और भी पुच्छना है ।
गौतमस्वामिने कहा कि भगवान आप अवश्य कृपा करावे । (२) हे गौतम श्रीपार्श्वपने साधुर्वेके लिये 'सचेल' वस्त्र सहित रहना वह भी पांचों वरणके स्वरूप वह वहु मूल्य अपरिमितमर्यादावाले वस्त्र रखना कहा है और भगवान वीरप्रभुने 'अचेल ' वस्त्र रहित अर्थात् जीर्ण वस्त्र वह भी श्वेत वर्ण और स्वल्प मूल्यवाला रखना कहां है इसका क्या कारण है ?
(उत्तर) हे भगवान् मुनियोंकों वस्त्रादि धर्मोपकरण रखनेकी आशा फरमाई है इसमें प्रथम तो साधुलिंग है वह बहुतसे जीवोंकों विश्वासका भाजन है और लिंग होनासे भव्यात्मावों धर्मपर श्रद्धा रखते हुवे स्वात्म कल्याण कर सकते हैं दुसरा मुनियोंकी चित्तवृत्ति कबी अस्थिर भी हो जावे तो भी रूपाल रहेगा कि साधु हु दीक्षतहु यह अतिचारादि मुझे सेवन करने योग नहीं है अर्थात् अतिचारादि लगाते हुवे चिन्ह देखके रूक जायेगा । वास्ते यह धर्म उपकरण संगमके साधक है इसमें पार्श्वमभुकें
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