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(उ०) हे महाभाग्य-इन्ही घौर संसारके अन्दर रागद्वेष पुत्र कलीत्र धनधान्यरूपी जबरजस्त पास है उन्हीकों जैन शासनके न्यास और सदागम भावोंकि शुद्ध श्रद्धना अर्थात् सम्यग्दर्शनरूपी बीक्षण धारावाले शस्त्रसे उन्ही पासकों छेदन भेदन कर मुक्त हूवा मानन्दमे विचर रहा हु । अर्थात् रागद्वेष मोहरूपी पासकों तोडनेके लिये सदागमका श्रवण और सम्यग् श्रद्धनारूप सम्यग्दर्शनरूपी शस्त्र हे इन्हीके जरियेपाससे मुक्त हो शक्ता है। . हे गौतम-आप तो बड़े ही प्रज्ञावान हो और यह प्रश्नका उत्तर अच्छी युक्तिसे कहके मेरा संशयको ठीक समाधान किया परन्तु एक और भी प्रश्न पुच्छता हुं। . - गौतम-हे भगवान मेरे पर अनुग्रह करावे। .. (५) प्रश्न-हे भाग्यशाली ! जीवोंके हृदयमें एक विषवेलि होती है जिन्होंके फल विषमय होता है उन्ही फलोंका अस्वादन करते हुवे जगत् जीव भयंकार दुःखके भानन हो जाते हैं, तो हे गौतम मापने उन्हीं विष वेल्लिको मूलसे केसे उखेडके दूर कर, केसे अमृतपान करते हो ? ..(उ०) हे भगवान् ! म्है उन्हीं विषवेल्लिको एक तीक्षण कुदालेसे जड़ा मूलसे उखेड दी, अत्र उन्ही विषमय फलका भय न रखता इवा जैन शासनमें न्यायपूर्वक मार्गका अवलम्बन करता हुवा विचरता हु। ... (प्र०) हे गौतम आपके कोनसी विषवेल्लि और कोनसा कुदालसे उखडके दुर करी है ?