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(२४) जावे पर जीव कोका अबन्धक हो जाते है।
(७२) प्रश्न-अबन्धक होनेसे जीवोंका क्या फल होता है ? ___ (उ०) अवन्धक होनेसे अर्थात् अन्तर महूर्त आयुष्य रहनेसे योगोंका निरूद्ध करते हुवे सुक्षम क्रियासे निवृति और शुक्ल घ्यानके चोथे पायेका ध्यान करते हुने प्रथम मनोयोगका निरूद्ध पीच्छे वचन योगका निरूह पीच्छे काय योगका निरूद्ध करके पांच हूस्वाक्षर " अ इ उ ऋ ल" का उच्चारण कालमें समुत्सम क्रियाका निरूद्ध और शुक्ल ध्यानके अंदर वर्तते आयुष्य कर्म वेदनिय कर्म नामकर्म गोत्रकर्म इन्हीं च्यारों कर्मोको संयुग क्षयकर देता है।
(७३) प्रश्न-चारों अघातीये कोका क्षय करनेसे क्या फल होता है ? - (उ०) च्यारों अघातीये कर्मीका क्षय करनेसे जीव जो.. अनादि कालका संयोग वाला तेजस कारमण और औदारीक पहतीनों शरीरको छोडके शमश्रेणी प्राप्त अस्पर्श प्रदेश उर्व एक समय अविग्रहगतिसे ज्ञानके साकारोपयोग संयुक्त सिद्ध क्षेत्रमें अनन्ते अव्वावाद सुखोंमें विराजमान हो जाते है ।
__ यह ७३ प्रश्नोत्तर भव्यात्मावों के कण्ठस्थ करनेके लिये विस्तार नहीं करते हूवे मूल सूत्रसे संक्षेपार्थ ही लिखा है अधिक अभिलाषा रखने वाले आत्म बन्धुओंकों गुरुमुखसे यह अध्ययन अवश्य श्रवण करना चाहिये । इत्यलम् ।
- संवं भंते सेवं भते तमेव सचम् ।