________________
(२३) (६९) प्रश्न-मायाको विजय करनेसे क्या फल होता है। ..
(उ) मायाको जितलेनेसे जीवोंको सरलता निष्कपट भावोंकी प्राप्ती होती है इन्होंसे मायावरणीय नये कर्मोकी बन्ध नही होता है और पुरणे बन्धे हुवे कर्मोका निर्जरा होती है।
(७०) प्रश्न-लोभका विनय करनेसे क्या फल होता है। .
(उ) लोभ जित लेनेसे जीवोंकों निर्लोभता गुणकि प्राप्ती. होती है इन्होंसे लोभाव णीय कर्मका नये बन्ध न होगा पुरणे. बन्धे हूवे कर्मकी निर्जरा होगी।
(७१) प्रश्न-रागद्वेष और मिथ्यात्वशल्यका परित्याग करनेसे क्या फल होता है।
( 30 ) रागद्वेष मिथ्यात्वशल्यका त्याग करनेसे जीर ज्ञानदर्शन चरित्रकि आराधना करनेको सावधान होता है ऐसा. होनेसे जो अष्टकर्मोकि गंठो है उन्होंको छेदन भेदन करनेको तैयार होता है जिस्मे मी प्रथम मोहनिय कर्मकि अठावीस प्रति है उन्होंकि घात करता है बादमें ज्ञानावर्णीय कमकी पांच प्रकृती
और दर्शनवर्णिय कर्मका नब प्रकृति और अन्तराय कर्मकि पांच प्रकृति इन्हीं च्यार धन धातीये कर्मों की नाप्त कर देता है इन्हीं च्यारों कर्मो का नास (क्षय ) करनेसे अनुत्तर प्रधान निस्के आवरण नहीं है वह भी आनेके बाद फिर जाता नहीं है वेसा उत्तम केवल ज्ञानको प्राप्त कर लेते है तब संयोग केवली होते है उन्होंको सपराय कर्मका बंध नही होता है परन्तु इरिया वहो कर्य प्रथम समय बंध दुसरे समय वेदना तीसरे समय निर्जर हो एस दो समय वाल कर्मोका बन्द होता है फोर चौदवे गुणस्थार