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प्रश्नोत्तर ०२ सूत्र श्री उत्तराध्ययनजी अध्य० ९ .
(श्री नमिरान ऋषि) . प्रत्येक बुद्धि नमिराजाकि कथा विस्तारसे है परन्त हमारेको यहांपर प्रश्नोत्तर ही लिखना है वास्ते संक्षिप्त परिचय करा देना उचित समझा गया है यथा-मिथिलानगरीका नरेश नमिराजके शरीरमें दाह ज्वर होनानेसे पतिको भक्ति के लिये १.०८ राणीयों बावनाचन्दनको घसके अपने स्वामिके शरीरपर शीतक लेपन
रही थी उन्ही समय सब राण योंके हाथमें रत्नोंके ककयोंकी झणकार (भवान) रानाको नागवार गुजरने पर हुकुम दे दीया कि यह अवान मुझे अधिक तकलीफ दे रही है तब सब राणीयोंने अपने स्वामिका हुकूम होनेपर मात्र एकेक चुडी रखके शेष सर्व खोलके रखदी इतनेमें खका बन्ध होनेसे रामाने पुछा कि क्या अब वह झनकार नहीं है राणीयोंने कहा स्वामिनाथ हमने शोभाग्यके लिये एकेक चूडी ही रखी है इतनेमें तो नमिरानाको यह ज्ञान हुवा कि बहुत मोलने पर ही दुःख होता है अलम् अपनेको एकेला ही रहना चाहिये यह एकत्व भावना करते ही जाति स्मरण ज्ञान होगया आप परमयोगीराजा होके मिथिला नगरीको छोड बगीचेमें जाके ध्यानारूढ होगये ।
उन्ही समय प्रथम स्वर्गके सौवर्मेन्द्रने अवधिज्ञानसे देखा कि एकदम वगेर किसीके उपदेश नमिरानने योग धारण किया है। चलो इन्होंकि पारक्षा तो करे । तब इन्द्रने ब्रह्मणका रूप परम करके निमिराज ऋषिके पास आया और प्रश्न करता हुई।