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१०० ८१६ जिनप्रतिमावों स्थुभके चौतर्फ. २०८ चैत्यवृक्ष. २०८ महेन्द्रध्वज. २०८ पुष्करणि वावीयों. १६ वावीयों अञ्जनगिरीके चौतर्फ. ४ रतीगीरापर्वत. १६ राजधानीयों.
नन्दीश्वरद्विपके अन्दर बहुतसे भुवनपति बाणमित्रा जोतीषी और वैमानिकदेव पाखी, चौमासी, समत्सेरी या जिनकल्याणक दिने वहांपर एकत्र होते है जिनमहिमा भगवन् की मूर्तियोंकी भावभक्ति अर्चनपूजन करते है तथा जंघाचारण विद्या चारणमुनिभी वहांकि यात्रा करनेको पधारते है सूत्रोंमें बहूतसे विस्तारसे नन्दीश्वरद्विपका व्याख्यान किया है परन्तु भव्यात्मावोंके कंठस्थ करनेके लिये संक्षेपसे मुदासर वातों थोकडारूपमें लिखदि है वास्ते इन्हीकों पेस्तर कंठस्थ कर फीर बहू श्रुतियोंके पास शास्त्रश्रवण करो तोके वडा ही आनन्द आवेगा इति.
॥ सेवंभंते सेवंभंते तमेव सच्चम् ।।
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