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द्रव्यदिशासे में कौनसि दिशा या विदिशासें आया हूं जब द्रव्यदिशा है तो भावदिशाभी आवश्य होना चाहिये वास्ते शास्त्रकार भावदिशा केहते है.
१२) भावदिशा-पृथ्वीकाय, अपकाय, तेउकाय, वायुकाय, तथा वनस्पतिकायके च्यार भेद है (१) मूल बीया-जिन्होंके मूलमें बीज रहेता है मूलादि, (२) कन्दबीया-जिस्के कन्दमें बीज रहेते है नागरमोथादि, (३) पोरबीया-जिस्के गाठ गाठके अन्दर बीज रहेते है इक्षुवादि, (४) स्कन्धबीया-जिस्के स्कन्धमें चीज रहेते है शाली आदि एवं ८ बेरिन्द्रिय, तेरिन्द्रिय, चौरिन्द्रिय और तीयंच पंचेन्द्रिय तथा मनुष्य च्यार प्रकारकेकर्मभूमि, अकर्मभूमि, अन्तरद्विपे और समुत्सम मनुष्य एवं १६ नारकि और देवता सर्व मीलके भावदिशा १८ होती है पूर्वोक्त जीवोंको यह ख्याल नहीं है कि में कौनसी दिशा
आया हूं और कौनसी दिशामें जाउंगा अगर में जीन्ही कुटम्बके साथ रक्त हो रहा हूं वह कुटम्ब कौनसी दिशा से आया है और कौनसी दिशामें जावेगा अज्ञानवत् जीवोंको इतना ज्ञान नहीं होता है इसी अज्ञानके जरिये जीवअनादि कालसे इन्ही भवचक्रमें भ्रमण करते है.
कितनेक जीव एसेभि होते है कि स्वयं जानलेते है कि में पूर्वभवमें अमुक गतिजतिमें था या अमुक दिशासें यहांपर