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(उ०) निर्वेद होनेसे जीव जो देवता मनुष्य और तीर्यक सम्बन्धी कामभोग है उन्होंसे अनाभिलाषी होता है फिर शब्दादि सर्व कामभोगोंसे निवृति होता है फिर सर्व प्रकारके भारम्भ सारम्भ और परिग्रहका त्याग कर देते है एसा त्याय करते हुवे संसारका मार्गको बीलकुल छेदकर मोक्षका मार्ग पर सीधा चलता हुवा सिद्धपुर पटनकों प्राप्त कर लेता है।
(३) प्रश्न- धर्म करनेकि पूर्ण श्रद्धावाले भीवोंको क्या फल ? . (उ०) धर्म करनेकि पूर्ण श्रद्धावाले जीवोंको पूर्व भवमें साता वेदनिय कर्म किये जिन्होंसे इस भवमें अनेक पौदगलीक सुख मोला है उन्होंसे विरक्त भाव होते हुवे गृहस्थावासका त्याग कर श्रमण धर्मको स्वीकार कर तप संयमादिसे शरीरी मानसी दुःखोंका छेदन भेदन कर माव्याबाद सुखोंमें लोक अग्र भागपर विराजमान हो जाते है।
(४) प्रश्न-गुरु महाराज तथा स्वधर्मी भाइयोंकी शुश्रषा पूर्वक सेवा भक्ति करनेसे जीवोंको क्या फल होता है ?
(उ) गुरु महाराज तथा स्वधर्मी भाइयोंकि शुश्रषापूर्वक सेवा भक्ति करनेसे जीव विनयकि प्रवृतिको स्वीकार करता है इन्हीसे जो बोध बीजका नाश करनेवाली आसातनाकों मूलसे उखेड देता है अर्थात आसातना नहीं करनेवाला होता है। इन्हींसे दुर्गतिका निरूद्ध होता है तथा गुरु महाराजादिकी गुण कीर्ति करनेसे सद्गति होती है सदगति होनेसे मोक्षमार्ग (ज्ञान दर्शन चरित्र) को विशुद्ध करता है और विनय करनेवाला लोकमें प्रशंस्या करने लायक होता है सर्व कार्यकि सिद्धि विनयसे होती,