________________
११०
च्छोलोक क्रमःसर संकोचीत और उप्रलोक पुनः विस्तारवाला है अर्थात् कम्बरके हथ लगाके नाचता वोपाके आकार लोक है वह भी द्रव्यापेक्ष सास्वत है और वर्णादि पर्यायापेक्ष असास्वत है इन्हीसे इश्वर वादीयोंका नीरकार कीया है ।
(३) कर्मवादी-कर्म अनादि से आत्माके गुणोंको रोक रखा है जैसे सूर्य तजस्वी है परन्तु वादलोंका अवरण आनासे तेजको रोक देता है वसे कर्म भी जीवके गुणोंको रोक देते हे जैसे
____ कर्म
-
ज्ञानावर्णीय दर्शनावर्णीय वेदनिय मोहनिय
आयुष्य नामकर्म गौत्रकर्म अन्तरायकर्म
आवर्ण द्रीष्टान्त । कौनसा गुणोंको रोके. घाणिका वहल ज्ञानगुणको रोके राजाका पोलीया दर्शनगुणको रोके मघुलीपत छुरी | अबाद सुखको रोके मदरापान पुरुष / क्षायक गुणको रोके केद कीया हुवा | अठलावगाहन गुणको रोके चित्रकार माफिक अर्ति गुणको रोके कुभकार , गुरू लघु गुणको रोके राजाका भंडारी | वीर्य गुणको रोके
-