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त्रस स्थावर जीवोंका अचित तथा सचित शरीरमे अग्निकाय उत्पन्न हुवे | ८८। सस्थावर योनिया अग्निमे अग्नि उत्पन्न हुवे । ८६ । अग्नियोनिया अग्निमे अग्नि उत्पन्न होती है। ६० । अग्नि योनिया अग्निमें, सस्थावर जीव उत्पन्न होता है । ६१।
सस्थावर जीवोंका सचित अनित शरीरमे वायुकाय उत्पन्न होती है । ६२ । त्रसस्थावर योनिया वायुकायमे वायुकाय उत्पन्न होती है । ६३ । वायु योनियावायुमें वायुकाय उत्पन्न होती है । ६४ । वायु योनियावायुकायमें बस स्थावर उत्पन्न होता है । ६५।
स स्थावर जीवोंका सचित अचित शरीरमें पृथ्वीकाय उत्पन्न होती है । ६६ । त्रस स्थावर योनिया पृथ्वीकायमें पृथ्वीकाय उत्पन्न होती है । १७ । पृथ्वी योनियापृथ्वीमें पृथ्वीकाय उत्पन्न होती है । १८ । पृथ्वी योनियापृथ्वीकायमें बस स्थावर उत्पन्न होता है सर्व स्थानपर उत्पन्न होता है । वह पेहले अपना उत्पन्न स्थानके स्निग्धके पुद्गलोंका आहार लेता है बादमें छे कायाके शरीरके मुकेलगे पुगलोंका आहार लेके अपने शरीरका वर्ण, गन्ध, रस, स्पर्श नानाप्रकारके बनाते है।
नारकी कुंभीमें उत्पन्न होते है । १०० । देवता शय्यामें उत्पन्न होते है । १०१ । इति आहार अलापक ।