________________
६७
बिन प्रतिमापद्मासन शान्तमुद्रा स्थुभ सन्मुख मुख किया हुवे विराजमान है । उन्हि स्थुमसे आगे एक मणिपिठ चौतरो है वह आठ जोजनके विस्तारवाला उन्होंके उपर चैत्य वृक्ष आठ जोजनको उचो है वर्णन करने योग्य है उन्होंके आगे ओर भी आठ जोजनका मणिपिठ चौतारा है उन्होके उपर महेन्द्र ध्वज ६४ जोजनकी उची ओर भी छोटी छोटी विजय विजयन्ति ध्वज है उन्होंसे आगे नन्दा पुष्करणी वावी १०० जो० लम्बी ५० जो० चोडी १० जो० उडी अनेक कमल पागोतीया तौरण चमर छत्र ध्वज कर शोभनिक है। उन्ही वावी के च्यारो दिशा च्यार वनखंड है यह मूल सिद्धायतनके एक दिशा के पदार्थ कहा है एसे ही च्यारो दिशीमे समझना तथा पूर्व दिशाके वनखंडमे १६००० गोल आसन १६००० चौखुणा आसन पडा हुवा है एवं पश्चिममे और दक्षिणोत्तर दिशामे आठ आठ हजार है वह देवतोंके आने जाने वखत वह बेठनेकों काम आते है। __ मूल जिनमन्दिरके मध्य भागमे एक मणिपिठ चातरो १६ जोजन लम्बो पहलो है उन्ही के उपर एक देवच्छंदो १६ जोजन लम्बो पहूलो साधिक शोला जोजन उचो है अच्छो सुन्दर सर्व रत्नमय है उन्ही मूल गुबारामे १०८ जिनप्रतिमा पद्मासन शान्तमुद्रा विराजमान है। एवं प्रत्यक जिनमन्दिरे