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( २२ ) परिचारणाद्वार-सौधर्मशान देवलोकके देवोंको मन, शब्द, रूप, स्पर्श और कायपरिचारणा यह पांचो प्रकार कि परिचारणा है तीजा चोथा देवोंके स्पर्शपरिचारणा है पांचवा छठा दे० देवोंके रूपपरिचारणा है सातवा आठवा दे० दवोंके शब्दपरिचारणा है नव दश इग्यारा बारहवा देवलोकके दयोंके एक मनपरिचारणा है नौग्रीवेग और अनुत्तर वैमानके देवोंके परिचारणा नहि है विस्तार देखा परिचारणापदका धाकडामें.
(२३ ) पुन्यद्वार-जितना पुन्य व्यंतरदेव १०० वर्षमें क्षय करते है इतना पुन्य नागकुमारादि नव निकायके देव २०० वर्ष अमुरकुमार ३०० वप ग्रह नक्षत्र तारा ४०० चन्द्र सूर्य ५०० सौधर्मइशान १००० वर्ष सनत्कु० महेन्द्र २००० ब्रह्मेन्द्र लंतक ३०० महाशुक्र सहस्र ४००० अणतपणत अरण अचुत ५००० वर्षे पेहली त्रिक १ लक्ष दुसरी त्रिक २ लक्ष तीसरी त्रिक ३ लक्ष च्यार अणुत्तर ४ लक्ष सर्वार्थसिद्ध वैमानके देव ५ लक्ष वर्षमें इतना पुन्य क्षय करते है अर्थात् व्यंतरदेव भोगविलास हास्य कीतल्यादिमें १०० वर्षमै जीतना पुन्य क्षय करते है इतना पुन्य क्रमसर सर्वार्थसिद्ध वैमानके देव पांच लक्ष वर्षोंमें पुन्य क्षय करते है.