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तब वहांपर ठेरते है यह तीर्थाध्यष्टायक देवोंका अष्टमतप करते है या तीर्थंकरोंका जन्माभिशेषके लिये उन्ही तीर्थोंका जल औषधि आदि देव लाते है इत्यादि वह तीर्थका नाम-मागध, वरदाम और प्रभास एवं चक्रवरतकि ३४ विजयमें तीन तीन तीर्थ होनासे १०२ तीर्थ है.
(७) श्रेणी-जम्बुद्विपमें श्रेणी १३६ है यथा वैताज्यगिरि २५ जोजनका धरतिसें उंचा है उन्ही पर्वतके उपर धरतिसें १० जोजन उपर जावे तब विद्याधरोंकी २ श्रेणि (१) दक्षिण श्रेणि जिस्में ५० नगर है (२) उत्तर श्रेणि जिस्में ६० नगर आते है उन्ही विद्याधरोंकी श्रेणिसे दश दश जोजन उंचा जावे तब अभियोग देवोंकी दो दो श्रेणि आति है (१) दक्षिण श्रेणि (२) उत्तर श्रेणि वहांपर व्यंतरदेवता पूर्व कीये हवे सुकृतके फल भोगवते है एवं ३४ वैताड्यपर च्यार च्यार श्रेणि है सर्व मीलके १३६ श्रेणि होती है इति.
(८) विजयद्वार-जम्बुद्विपमें ३४ विजय है जहाँपर चक्रवर्त के खंडको विजय करते है अर्थात् के खंडमें एक छत्रराज करते है.
महाविदेहक्षेत्र एक है परन्तु उन्हीमें ३२ विजय अलग अलग है जिस्में १६ विजय मेरुपर्वतसे पूर्वकी तर्फ है और १६ विजय मेरुपर्वतसे पश्चिमकि तर्फ है जो पूर्व महाविदेहमें १६