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स्थितिवाले अनुवेलन्धर देवोंका पर्वत है इन्ही आठों पर्वतोपर वेलन्धरानुवेलन्धर नागराजा देवोंका आवास प्रासाद है सर्व रत्नमय देवतोंके योग्य वह प्रासाद ६२॥ जो. उचा ३१। जो. का चोडा अनेक स्थभ कर अच्छा सुन्दर है । इति ।
लववसमुद्रमे छपनान्तरद्विप है उन्हों के अन्दर पल्योपम के असंख्यात भागके आयुष्यवाला ओर ८०० धनुष्याक प्रावग्गहानावाले युगल मनुष्य रहेते है जम्बुद्विपके चुलहेमवन्त ओर सीखरी पर्वत के निश्राय (सामिपसे) लवणसमुद्रमें दोडोके आकार टापुवों कि लेन गइ है जैसे जम्बुद्विप कि जगतिसे ३०० जोजन लवणसमुद्रमें जावे तब पेहला द्विपा ३०० जोजनका विस्तारवाला आता है उन्ही द्विपासे ४०० जोजन तथा जगतिसे भि ४०० जो० जानेपरे दुसरा द्विपा ४०० जोजनके विस्तारवाला आता है। उन्ही द्विपासे ५०० जोजन तथा जगतिसे भी ५०० जोजन जानेपर तीसरा द्विपा ५०० जो० के विस्तारवाला आता है उन्ही द्विपासे या जगतिसे ६०० जोजन जानेपर चोथो ६०० जो विस्तारवाला द्विप
आता है। उन्ही द्विपसे या जगतिसे ७०० जो० जानेपर ७०० जो० विस्तारवाला पाचवा द्विप आता है उन्ही द्विपसे या जगतिसे ८०० जो० जानेपर ८०० जो० विस्तारवाला छठा द्विप आते है उन्ही द्विपसे या जगतिसे' १०० जो० जानेपर १०० जो० विस्तारवाला सातवा द्विप आता है सर्व लवणस