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अन्तरा ७८८४ कलशा होता है वह सर्व छोटा कलशा एक हजार जोजनका लम्बा और मध्यभाग मे १००० विस्तार तथा
धो भाग या मुख सो सो जोजनका और दश जोजनकी • उपर ठीकरी है एवं सर्व ७८८८ कलशा है । उन्ही कलशोके तीन तीन भाग करना जिस्मे निचेके ती भागमे वायु है मध्यके ती भागमे वायु और पाणी है उपरके ती भागमे पाणी है । जो निचेका भागमे वायु है वह वैक्रय शरीर करे उन्ही समय उपरका पाणी उच्छलने लग जात है वह प्रत्यदिनमें दो बखत पाणी उच्छा ला देता है.
तब लवण समुद्रकि वेल (दगमाला) का पाणी उच्छलता है परन्तु तीर्थंकर चक्रवरतादि पुन्यवानका प्रभावसे एक बुंद भी निचि नहीं गिरती है अथवा यह लोकस्थिति है साखता भाव वर्तते है और च्यार पातालकलशोंका अधिपति च्यार देवता है कालदेव, महाकालदेव वेलवदेव, प्रभंजनदेव एक पोपaकि स्थिति तथा ७८८४ कलशोंका देवतोंकी आधा पयोकि स्थिति है । इति पातालकलशा ।
लवणसमुद्रमें पाणिका दगमाला १०००० जो० चोडा विस्तारवाला १००० जो ० उढा है १६००० जो० का उंचा है सर्व १७००० जो० का है । जब पाणि उच्छलता है तब दो कोश, उंची सीखा था- जाती है।
लवणसमुद्रके मध्यभाग अर्थात् दोनों तर्फ ६५००० ।