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श्री शक्ती है एवं इशानेन्द्रके भी समझना शेष देवलोकमें देवी उत्पन्न होने का स्थान नहीं है उर्ध्व नकके देवी पेहला दुसरा देवलोक में भागमें आती है देवीका उर्ध्व आठमा होता है.
चुत देवलोकके देवों रहेती है वह देवोंके देवलोक तक गमन
( २० ) वक्रयद्वार - शक्रेन्द्र वैमानिकदेवी देवतसे दो जम्बुद्विप भरदे असंख्यातेकी शक्ती है एवं सामानीक -लोकपाल - तावत्रिसका और देवी भी समझना. इशानेन्द्र दो जम्बु fire साधक परिवार तथा सनत्कुमार ४ जम्बु महेन्द्र ४ साधिकमेन्द्र = जम्बु लांतकेन्द्र आठ साधिक महाशुक्र २६ जम्बु० सहस्र २६ साधिक पान ३२ अतेन्द्र ३२ साधक जप कसे देवी देव बनाके भरदे कि शक्ती संख्या जम्बुद्विप भरदेनेकी है शेष वैक्रय नहीं करे.
ध्वज
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( २१ ) अवधिद्वार - अवधिज्ञान सर्व इन्द्र ज अंगुल असंख्यातमां भाग उ० उर्ध्व अपने अपने वैमानके ज तीच्छा असंख्याते द्विप समुद्र अधो शकेन्द्र उशानेन्द्र पेहला नरक देखे, सनत्कु महेन्द्र दुसरी नरक देखे, ब्रह्मेन्द्र लातकेन्द्र तीसरी नरक देखे, महाशुक सहस्र चोथी नरक देखे. अणतपत अरण अन पांचमी नरक देखे, नांग्रीवैगके देव छटी नरक च्यार अणुत्तर वैमान सातमी नरक तथा सर्वार्थसिद्ध वैमानका देवा तमनाली सम्पूर्ण जाने देखे.
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