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दक्षिणकी तर्फ बिजयन्त नामका दरवाजा है। पूर्व पश्चिमके दोनों खंडमें हजार हजार देश मीलाके दक्षिणभरतके तीनों खंडमे १६००० देश है इसी माफीक उत्तरभरतमें भि १६००० देश है इन्ही भरतक्षेत्रमें कालकि हानि वृद्धिरुप सर्पिणी उत्सर्पिणी मीलके कालचक्र है वह देखो. छे आरोका थोकडामें । एक सर्पिणीमें २४ तीर्थकर १२ चक्रवरत हबलदेव : वासुदेव ह प्रतिवासुदेव नियमत होते है । इति. .
(२) एरभरतक्षेत्र-भरतक्षेत्रकि माफिक है परन्तु भरतक्षेत्रकि मर्यादाकारक चुलहेमवन्तपर्वत है और एरभरतक्षेत्रकी मर्यादाकारक सीखरीपर्वत है शेष बराबर है इति.
(३) महाविदह क्षेत्र-निषेड और निलवन्त दोनों पर्वतोंके विचमे महाविदहक्षेत्र है वह पलंक के संस्थान है चक्र वरतकि ३२ विजयसे अलंकृत है । अगर महाविदेहक्षेत्रका च्यार विभागकर दिया जावेगें तो (१) पूर्व विदह (२) पश्चिम विदह (३) देवकूरू (४) उत्तर कूरू.
विदहक्षेत्रके मध्य भागमे मेरू पर्वत पृथ्वीपर १०००० जो के विस्तारवाला है उन्ही के पूर्व पश्चिम दोनु तर्फ बावीस बावीस हजार योजनका भद्रशालवन है। उन्हीसे दोनों तर्फ (पूर्व पश्चिम ) शोला शोला विजय है अर्थात् पूर्व विदहरूप १६ विजया और पश्चिम विदह रूप १६ विजय है।
मरू पर्वत १०००० जोजनका है उन्हीसे उत्तर दचिव