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है जिन्होंकों उपर तीर्थंकर भगवान्का जन्माभिशेष इन्द्रमहाराज करते है । उन्होंके नाम-पंडूशीला, पंडूकबलशीला, रक्तशीला, रक्तकंबलशीला वह शीलाबों पांचसो जोजन लम्बी अढाइसो जो० चोडी च्यार जो० जाडी है अर्धचन्द्र के आकार सर्व कनकमय अच्छी सुन्दर है । वेदिकावन खंडदिसे सुशोभित है । उन्ही शीलावोंके च्यारो तर्फ अच्छा पागोतीया उन्होंके उपर तोरणादिसे और शीलावोंके उपरका तला अच्छा साफ है जिस्में पूर्वपश्चम शीलावोंके उपर दो दो सींहासन ५०० धनुषका लम्बा २५० धनु० चोडा जिसपर विदेहक्षेत्रके तीर्थंकरोंका जन्माभिशेष जो भुवनपति व्यंतर जोतीषी और वैमानीकदेवता करते है और उत्तरदक्षिणकी शीलापर एकेक सींहासन है उन्हीके उपर तीर्थंकरोंका जन्माभिशेष पूर्ववत् च्यार निकायके देवता करते है.
मेरूपर्वतके तीन करंड है (१) हेठेका (२) मध्यमका (३) उपरका जिस्में हेठला करंड १००० जो० धरतीमें है जिस्म २५० जो० पृथ्वीमय २५० जो० पाषाणमय २५० जो० वज्रमय २५० जो० शार्करा पृथ्वीमय है। मध्यमका करंड धरतीके उपर ६३००० जोजनका है जिस्में १५७५० जो० रजतमय १५७५० जो० रूपामय १५७५० जो० स्फटक रत्नमय १५७५० जो० अंकरत्नमय है उपरका करंड ३६०००