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(२२) तेनो
, (२३) पद्म , " " (२४) शुक्ल ,,
, से भंते सेवं भंते तमेव सचम्
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थोकडा नंबर ६ सूत्र श्रीपन्नवणाजी पद १७ उ० ६
गर्भकी लेश्या कितनेक लोक कहते हैं कि जेसे माता पिताकि लेश्या होती है वैसे ही उन्होंके गर्भके जीवोंकि लेश्या होती परन्तु यह मात एकांत नहीं है करण जीव सर्व कर्माधिन है और कर्म सई भीयों के स्वरूत विभत्र प्रकारका है वह इस थोकडेद्वार बताया जायगे।
(प्र) हे भगवान् । लेश्या कितने प्रकारकि है ।
(उ) लेझ्या छे प्रकार कि है यथा कृष्ण लेश्या, निल. कापोन लेश्या ० तेजो० पद्म शुक्ल लेश्या।।
१२ समुचय पनुः-- मनुमणि सगुचय कभि मनुष्य मनुष्यणी, भरतक्षेत्रके कर्म में मनुष्य-मनुष्यणि एवं एस्वरतके मनुष्य मनुन्यःणे, पूर्व विदेहके मनुष्य मनुष्याणे एव पश्चिम विदेहके मनुष्य मनुष्यणि एवं १२ बोलोंमें लेश्या छेछे पावे ।
२४ पूर्ववत् घातकिखण्डहिपमें दुगुण क्षेत्र होनासे १२ कों कुगुण करनेसे २४ बोल होता है.
२४ पुष्कई द्विपमें भी घातकि खण्ड बराबर ही समझना