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(१) प्रचला-बैठा बैठा निद्राले
(४) प्रचलाप्रचला - चलता हुवा निद्राले.
(१) स्थनद्धि - दिनका चिन्तन किया कार्य निद्रामें करे. इस निद्रामें वासुदेव जितना बल होता है.
(६) चक्षुदर्शनावर्णिय बराबर देख नहीं सकता.
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(७) अचक्षु दर्शनावर्णिय - चक्षुके सिवाय चार इन्द्रियोंसे सम्पूर्ण काम न ले सके ।
(८) अवधिदर्शनावर्णिय- अवधिदर्शनहोने न दे.
(९) केवल दर्शनावणिय केवल दर्शन होने नदे.
(३) इसी माफक वेदनी कर्म भी समझना परन्तु वेदनी कर्मके दो भेद है. साता वेदनी और असातावेदनी जिसमें सातावेदनी का अनुभाग ८ प्रकारका है.
(५) मनोज्ञश, रूप, गन्ध, रस, स्पर्श.
(६) मन हमेसा अच्छा रहना ( समाधी से ) (७) वचन हमेसा अच्छा रहना ( मधुर बोलने से ) (८) काय - अंगोपांग अच्छा होना ( हाथकी चतुरतादि ) असातावेदनीका इससे विप्रीत अशुभ फल समझना.
(४) मोहनिय कर्मके उदय अनुभागके पांच भेद हैं यथा. (१) मिध्यात्व मोहनीय- इसके उदयसे वस्तुकी विप्रीत श्रद्धा होती है.
(२) मिश्रमोहनीय - इसके उदयसे मिश्रभाव होता है. (३) सम्यक्त्व मोहनीय - इसके उदयसे वस्तुकी यथार्थ श्रद्धा
होती है परन्तु क्षायक सम्यक्त्व प्राप्त नहीं होने देता.