________________
[३९] प्राप्त होने पर अज्ञाता (नरकादि गति) साता (देवादि गति) और जितनी स्थिति बन्धी है वह और जिः भवका बन्ध है वह भोगने लगता है. को पुल बन्छ या राज उदयो भने हैं ये भोगने लगा इस मा जोमाने का मन पडले हैं. यह ज्ञानावाणिय कर्मक विधाक अनुभाग दश प्रकार से भोगता है यथः
(१) श्रोत्रेन्द्रिय द्वारा शब्द सुने नहीं. (6) अगर सुन भी ले तो समझे नहीं. ३) चक्षु इन्द्रिय द्वारा रूप देख सके नहीं. ४) अगर देखले तो समझे नहीं. (२) प्राणेन्द्रियद्वारा पुत्रोंको सून न सके. १६) अगर सुंध भी ले तो समझ न सके. (5) रसेन्द्रिय द्वार स्वाद न ले सके. (८) अगर म्वादले भी तो समझे नहीं. (६) अच्छे स्पर्शको वेदे नहीं। १०) अगर वेदे तो समझे नहीं
जो वेदले हैं वे पुद्गल एक या अनेक विशे पा. स्वभावसे बादलवत प्रणमते हैं. और उसे भोगते हैं. परन्तु ज्ञानवर्णीय कर्मक प्रबल उदयसे जान नहीं सक्ने यह ज्ञानवर्णिय कर्मका कल याने विपाक है कि जीवको अज्ञानी बना देता है.
(२) दर्शनावर्णिय कर्म उदय होनेसे जीवको नौ प्रकारका अनुभाग होता है.
(१) निद्रा सुखसे सोवे सुखसे जागे. (२) निद्रा निद्रा-मुखसे सोवे दुःखसे जागे.