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१३. राजधानी--जोतीपी देवों कि गजधानीयों नीरछलोकमें असंख्याती है जमे इस जम्बुहिएके जातीय देव है उन्हों कि गजधानी असंख्यात द्विपसमुद्र जापा मग उन्न द्विप आता है उन्ही के अन्दर मार को विस्तारवाली है वडीही मनोहार मनमानिया माफीक है और जोतीषी दबाके द्विषा भी असंन्याने है शान्त वह द्विपा सर्व द्विपममुद्रोंके जोनीपीयोंका द्विपासमुद्रम है जय जम्बुद्विपके जोतीषीयोंके द्विपालवण समुद्रमें है और लवण समुद्रके जोतीषीयोंका द्विपा भी लवणसमुद्र में है तथा घान कि खएडद्विपके जोतीषीयोंका द्विपा कालोदद्धि समुद्र में है इमी माफिक सर्व स्थानपर समजना.
(४) सभाद्वार-जोतीषीदेवोंका इन्द्रोंके पांच पांच सभावों है (१) उत्पातसभा (२) अभिशेपसभा (३) अलंकारसभा (४) व्यवशायसभा (५) सौधर्मसभा यह ममा राजधानीयोंके अन्दर है वर्णन देखो भुवनपतियोंकों.
(५) वर्णद्वार-ताराके शरीर पांचों वर्णका है शेष तपा हूवा सूवर्ण जेसा है.
(६) वस्त्रद्वार--अच्छा सुन्दर कोमल मव वर्णका वन जोतीषीयोंके है.
(७) चन्हद्वार-चन्द्रके मुकटपर चन्द्रमांडलका चन्ह