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४००० देव उठाते है ताराके वैमानको २००० देव उठाते है पूर्वादि दिशा पूर्ववत् समझना.
(११) मांडलाद्वार-जोतीषीदेव दक्षिणायनसे उनरायन गमनागमन करते है उसे मांडला केहते है अर्थात चलनकि सडककों मांडला केहते है वह मांडलोंके क्षेत्र ५१० जोजन है जिम्में ३३० जोजन लवण समुद्रमें और १९० जोजन जंबुद्वीपमें है कुल ५१० जोजन क्षेत्रमें जोतीपी देवोंका मांडला है चन्द्रका १५ मांडला है जिस्में १० मांडला लवणसमुद्र में और ५ मांडला जंबुद्विपमें है एवं मूयके १८४ मांडला है जिसमें ११६ लवणसमुद्रमें और ६५ मांडला जंबुद्विपमें है ग्रहका ८ मांडला है जिसमें ६ मांडला लवणसमुद्र में २ बुद्विपमें है जो जोतीघीयोंका जंबुद्विपमें मांडला है वह निषेड और निलवेत पर्वतके उपर है । चन्द्रमांडल मांडल अन्तर ३५ जोजन उपर : और सूर्य मांडल मांडल अन्तर दो जोजनका है इति.
(१२) गतिद्वार-सूर्य कर्के शंक्रात अर्थात् आमाढ श्रुत पूर्णमाके रोज एक महुर्तमें ५२५१-। इतनों क्षेत्र चाले तथा मक्रे शंक्रात अर्थात् पोष श्रुक्क पूर्णमाने एक महूर्तमें ५३०५ : इतने क्षेत्र चाल चले । चन्द्रमा कर्के शंक्रातमें एक महतमें ५०७३, ८ मळे शंकातने ५१२५- ५.
(१३) तापक्षेत्र-कर्के शंक्रातमें तापक्षेत्र १७५२६।: