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नहीं जाने भावार्थ यह है कि समय बहुत सुक्षम है एक समय में दो उपयोग ( ज्ञान और दर्शन ) नहीं होशक्ते हैं परंतु जिसी समय केवलियों के केवल ज्ञान है. उसी समय केवल दर्शन मौजूद है ज्ञान और दर्शन युगपत् समय मोजूद है जैसे रत्नप्रभा नारकी कही है वैसे ही ७ नारकी १२ देवलोक नौयँबैंक अनुत्तर वैमान इस पभारा पृथ्वी और परमाणु द्विप्रदेशी यावत् अनंत प्रदेशी स्कन्ध भी समझना. इस विषय पूर्वाचार्यों का भी मत्तन्तर हे देखो प्रज्ञांपना सूत्र |
(प्र) हे भगवान् । केवली अनाकार अहेतू यावत् अप्रमाण कर जिस समय रत्नप्रभा नरकको जानते हैं उसी समय देखें ! ( उ ) जिस समय जाने उस समय नहीं देखे भावना पूर्ववत् यावत् अनन्त प्रदेशी स्कन्ध तक समझना. सेवंभंते सेवंभंते तमेवसच्चम् |
थोकडा नम्बर १३
सूत्र श्री पन्नवणाजी पद ३१ ( संज्ञी पद )
(१) संज्ञी - संज्ञी जीवोंका आयुष्य बन्घा हूवा हो तथा मनके साथ इन्द्रियोंके उपयोग में वर्तता हो वह जीव पहेला गुणस्थानसे बारहवां गुणस्थान तक मीलते है ।
(२) असंज्ञी - असंज्ञी पणाका आयुष्य बन्धा है मन रहित इन्द्रिय वर्तें यह जीव पेहले दुसरे गुणस्थान में मीलते हैं ।
(३) नोसंज्ञी मोभसंज्ञी - इन्द्रियका उपयोग रहित अर्थात