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योकड़ा नं० २१ .
(सम्यक्त्वके ११ हार) (१) नामद्वार (१) लक्षणद्वार (३) आवणहार (९) पावणद्वारे (५) परिमाणहार (5) उच्छेदद्वार (७) स्थितिद्वार (८) अन्तरद्वार (९) निरन्तरद्वार (१०) आगरेसद्वार (१.१) क्षेत्र स्पः नाद्वार (१२) अल्यावहुतहार इतिः
(१) नामहार- सम्यक्त्व च्यार प्रकारकी होती है यथा क्षायक सम्यत्व, उपशमसम्य०, वेदकसभ्य०, क्षोपशमसम्य० ।
(२) लक्षणद्वार-क्षायक सम्यक्त्वके लक्षण जैसे अनंता. नुबंधी क्रोध मान माया लोम और मिथ्यात्वमोहनिय, मिश्रमोहनिय, सम्यक्त्वमोहनिय एवं ७ प्रकृतियोंका मूलसे क्षय करनेसे क्षीयक सम्यक्त्व की प्राप्ती होती हैं । पूर्वोक्त ७ प्रकृतियोंको उपशमानेसे उपशम सम्यक्त्वक प्राप्ती होती है। पूर्वोक्त ७ प्रतियोंसे ६ प्रकृतियोंको उपक्षमावे और एक सम्यक्त्वमोहनियको वेद उन्हींकों वेदक सम्यक्त्व कहते हैं। पूर्वोक्त ७ प्रकृतियोंसे मनन्तानुबन्धी चौकको क्षय करें और तीनमोहनियोंको उपशमावे उन्हीको क्षयोपशम सम्यक्त्व कहते है।
(३) आवणहार-क्षायकसम्यक्त्व एक मनुष्यके भवमें भावे, शेष तीन सम्यक्त्व चारों गतिमें भावे ।
_ (७) पाक्ण बार-च्यारौ सम्यक्त्व च्यारों गतिमें पावे । कारण क्षायक सम्यक्त्व मनुष्यके भक्में ही आति है परन्तु सम्यक्त्व मानेके पेहला कीसी भी गतिका युध्य बन्ध गया हो