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सम्यक्त्व आह हो तो पूर्व बन्धे हवे आयुष्य के माफिक उन्हीं यतिमें जाना ही पड़ता है ।
(१) परिमाण द्वार - शायक सम्यके धणी अनन्ते मीले (सिद्धों की अपेक्षा) शेष तीन सम्यक्त्ववाले असंख्याते असंख्याते मी मीले ।
(६) उच्छेद द्वार-क्षायक सम्य० का उच्छेद की भी नहीं होता है शेष तीनों सम्य० कि भजना है ।
(७) स्थिति द्वार - क्षायक सम्य० सादि अन्त है अर्थात आदि है परन्तु अन्त नहीं है कारण क्षायक सम्य० आनेके बाद नहीं जाती है शेष दोय सम्य०कि स्थिति जघन्य अन्तरमईत उत्कृष्ट ६६ सागरोपम साधिक और उपशम सम्य० की जघन्य और उत्कृष्ट अन्तरमहूर्त है ।
(८) अन्तर द्वार-क्षायक सम्य० का अन्तर नहीं हैं शेष तीनों सम्यका अन्तर पडे तो जघन्य अन्तर महूर्त और उत्कृष्ट अनन्तकाल यावत् देशोना आर्द्धा पुद्गल परावर्तन करते हैं अर्थात् सम्य० आने के बाद पीच्छी चली जावे और मिथ्यात्वमें रहे तो देशोना अर्द्ध पुद्गलसे अवश्य सम्ब० को प्राप्ती हो मोक्ष जावे ।
(९) निरंतर द्वार - जो जीवोंकों सम्य० आति है तो कहा तक आवे ? क्षायक सम्य० आठ समय तक निरंतर आवे । फिरतो अन्तर पडे ही । शेष तीन सम्य० आवलिका के असंख्यात में भाग समय हो इतनी टैम तक निरंतर आवे |
(१०) आगरेस द्वार - क्षायक सम्प० एक जीवको एक भव या घणा भवमें एक ही दफे आवे। आनेके बाद पीच्छी जांवे