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। ५८] पयोगवान् न जाने न देखे० (२) उपयोग वाले हैं वह जाने देखे ओर आहार करे विशेषो उपयोगवान् होनासे ।
(४) अध्यवशाय-अध्यवशा प्रत्येक जीवोंके असंख्याते असंख्याते हे वह प्रशस्थ अप्रशस्थ दोनों प्रकारके होते है वह २४ दंडकोंके जीवोंके हैं।
(१) अभिगम-सम्यक्त्ववान् जीव होते है वह वस्तुको यथार्थ जानते है (२) मिथ्यात्ववान् वस्तुको विप्रीत जाने (३) मिश्रवान् वस्तुको मिश्रभावे जाने नरकादि १६ दंडक मनवालोंको तीनों प्रकारका जान पणा होता है शेष ८ दंडक अर्थात् पांच स्थावर तीन वैकलेन्द्रियको एक मिथ्यात्व होनासे मिथ्याभिगम होता है आर वैकलेन्द्रिय अपर्याप्तावस्थामें सम्यग्दष्टी होता है परन्तु स्वल्पकाल होनेसे गौणपण है ।
(६) परिचारण-यह द्वार विशेष देवतावोंकि अपेक्षाहै देवता तीन प्रकारके है जिस्मे(१) भुवनपति व्यंतर ज्योतिषी सौधर्मशान देव लोकके देव, देवी और परिचारणा ( मैथुन ) सहित है (२) तीनासे बारहवा देवलोकके देव हे वह देवी रहीत और परिचारणा सहीत है (३) नौग्रीवैग और पांचानुतर वैमानके देव है वह देवी और परिचारण रहीत है परन्तु एसा देव नही हैं कि जिन्होंके देवी हो और परिचारणा रहीत हो।
परिचारणा पांच प्रकारकि है और उन्होका स्वामी
(१) कायपरिचारणा (मनुष्यकि माफीक) स्वामि भुवनपति व्यंतग्ज्योतीषी सौधर्मा ईशानदेवलोक के देव