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[७८] मर्णान्तिक (1) वैक्रिय (१) तेजस (1). माहारिक समुद्घान इति ।
नारकी और वायुकायमें समु. चार पावे, तेजस, माहारि बनके देवता तिर्यच में समु. पांच पावे, आहारिक बनके औ चार स्थावार तीन विकलेन्द्रिमें तीन वेदनी, कषाय, मर्णातिर मनुष्यमें १ पावे।
(५०) हे भगवान् ! समुच्चय जीव वेदनी समु० करके छोडे हुवे पुद्गल कितने क्षेत्रको स्पर्श और कितना क्षेत्र अप स्पर्शा रहे !
(उ०) हे गोतम ! वेदनी समु० करतों विष्कंभ पने और पहूलपने अपने शरीर प्रमाणे होता है और उतने ही क्षेत्रको स्पर्श करता है शेष रहा हुवा क्षेत्र अस्पर्श है नो क्षेत्र स्पर्श किया है वह नियमा छेदिशीका हैं।
(प्र०) काल अपेक्षा पृच्छा !
(उ०) वेदनी समृ० करनेवाला १-२-३ समयके कालको स्पर्शे शेष काल अस्पर्श अर्थात् वेदनी समु० का काल अन्तर मुहूर्तका है परन्तु कृत काल १-२-३ समयका है वेदनी समु० कियेके बाद बे पुद्गल शरीरमें अन्तर मुहूर्त रहते हैं बाद शरीरसे छूटते हैं याने अलग होते हैं। ..
(१०) वेदनी समु०.से छुटे हुवे पुद्गलोंसे किसी प्रण, भूत, जीव, सत्वको तकलीफ होती है जब समु० करने वाले को कितनी क्रिया लगती है।