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इन्द्रिय दो प्रकारकी है. द्रव्येन्द्रिय और भावेन्द्रिय. जिसमें द्रव्येन्द्रियके ( भेद यथा. कान दो, नेत्र दो, घ्राण दो ( प्राणके दो स्वर होते हैं ) जिह्वा एक, स्पर्श एक एव पाठ इन्द्रियोंको चौवीस दण्डक पर चार २ द्वारसे उतारेंगे। . नारकी १ भुवनपति १० व्यंतर १ ज्योतिषी १ वैमानिक १ तिर्यच पंचेन्द्री १ मनुष्य १ एवं १६ दंडकमें द्रव्येद्रिय पाठ पावे. एकेन्द्रिय के पांच दंडकमें द्रव्येन्द्रिय एक स्पर्शेन्द्रिय पावे, बीन्द्रिय में (२) रस और स्पर्श. तीन्द्रियमे ४ दो घ्राण जादा. चौरिन्द्रियमें ६ दो चक्षु जादा (चक्षु २ घ्राण २ रस १ स्पर्श १)
हे भगवान ! एक नारकीके नेगेयाने भूतकालमें द्रव्येन्द्रिय कितनी की वर्तमान में कितनी हैं भविष्य में कितनी करेगा ? एक नारकीके नेरीया भूतकालमें नारकीपने अनंती वार उत्पन्न हुवा इस लिये अनन्ती इन्द्रिया की है. वर्तमान कालमें ८ इन्द्रिय बांधके बैठा है. भविष्यमें द्रव्येद्रिय (-१६-१७ संख्याती, असंख्याती या अनन्ती करेगा क्योंकि जो नारकीसे निकलके मनुष्यका भव कर मोक्ष जायगा उसकी अपेक्षा ( इंद्रिय कही और जो नारकीसे त्रियं च पंचेंद्रियका भवकर मनुष्य भवमें मोक्ष जायगा उसकी अपेक्षा १६ कही और नारकीसे त्रियंच पंचेंद्वियका भव कर फिर पृथ्वीकायका भव करे और वहांसे मनु
*व्येन्द्रिय दोनो कानो द्वारा ट बनिष्ट शब्द श्रवण करना कथंचित् कोई पंचेन्द्रिय जीव एक कानसे न भी सुने तो द्व्यापेक्षा एक द्रव्येन्द्रिय सुन्य कही जाती हैं. और शब्द सुनके राग द्वेष करना मह भाबेन्दिर है. . . . . . . .