________________
[ ११ ]
नारकी तीन प्रकारके हैं (१) सम्यग्दृष्टी (२) मिथ्यादृष्टी (१) मिश्रदृष्टी जिसमे सभ्य • को आरंभ कि, परिगृह कि, माया कि, और अपचरकांण कि, एवं च्यार क्रिया लागे और मिथ्या • मिश्र० को पूर्ववत् और पांचमी मिथ्यात्व कि एवं पांच क्रिया लागे ।
(९) आयुष्य - सर्व नारकी के आयुष्य बराबर है.
नारकी च्यार प्रकारके हैं (१) बराबर आयुष्प और साथही में उत्पन्न हुवे (२) बराबर आयुष्य और विषमोत्पन्न हुवे (३) विषमायुष्यं और साथ में उत्पन्न हुवे ( ४ ) विषम आयुष्य और विषमही उत्पन्न हूवे || १ |
यह नारकी के दंडकर नौ द्वार उतारे गये हैं इसी माफक २४ दंडकों पर भी नौ नौ द्वार उतार देना परन्तु जो विशेषता है वाह निचे लिख देते है | (१३) देवतका १३ दंडक नारकी माफीक है परन्तु कर्म वर्ण लेश्या नारकीसे विप्रीत समझना कारण पहले उत्पन्न हूवे देवता शुभ कर्म बहूतसा भोगव चुका है शेष रहा है वास्ते अविशुद्ध है ओर पीच्छेसे उत्पन्न हूवे उन्होंको बहुत से कर्म बाकी है इसी माफीक वर्ण और लेश्याजी समझना. (८) पांच स्थावर तीन बैकलेन्द्रिय नरकवत् परन्तु वह सर्व असंज्ञी होनासे असंज्ञीभूत वेदना ओर मिथ्याद्रष्टी होनासे क्रिया पाच लगती है ।
शुभ
(१) वीर्यंच पांचेन्द्रिय नारकीवत् परन्तु क्रियाधिकारे तीयंच तीन प्रकारका है (१) सम्यग्दष्टी (२) मिथ्या० (३) मिश्र जिस्मे सम्यग्द्रष्टी के दो भेद है (१) असंयति ( २ ) संयता
0