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(७८) (१) बन्धन-स्निग्ध, स्निग्धका बन्ध नही होता. सन रूक्षका बन्ध नहीं होता. जैसे राखसे राखका और और घृतसे घृतका बन्ध नहीं होता. स्निग्ध और रुक्षका बन्ध होता है वह भी सममात्राका बंध नहीं होता परन्तु विषममात्राका बंध होता है। जैसे परमाणु परमाणुका बन्ध नहीं होता परमाणु दो प्रदेशीका बन्ध होता है।
(२) गति-पुद्गलोंकी गति दो प्रकारसे होती है ! एक स्पर्श करता हुआ जैसे पानी पर तीतरी चले, और दूसरी. अस्पर्श करता हुवा जैसे आकाशमें पांक्षी ।
(३) संस्थान-संस्थान आकारको कहते हैं जो कमसे कम दो परमाणु और जादामें संख्याते, असंख्याते या अनन्ते परमाणुवोंसे बनता है । जिसके परिमंडलसंस्थान वट सं० त्रस सं० चौरस सं० अयतन सं० एवं पांचे भेद हैं।
(४) भेद-पुद्गलों के छेद भेद होता हैं वह पांच प्रकारसे भेदाता है। यथा (१) खन्डा भेद-जैसे काष्ठादि जो भेदनेके बाद फिर न मिले । (२) परतर-भोडल, जलपोसादि । (३) चूर्ण-गहुं, बाजरी, झूठ, मरिचादि । (४) उकलीया-मूंग, मोठादिकी फली गे तापसे फटे । (५) अणुतूडीया-पानी मुख जाने पर मट्टीकी रेखा फट जाती हैं। .. (५) वर्ण-काला, नीला, लाल, पीला, सफेद-ये मूल वर्ष पांच हैं, और इनके संयोगसे अनेक होते हैं. जैसे बैगनी, मलागरी, बदामी, केजरीयादि.