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( ७२) गुणे और सर्वजीवोंका वर्गमूल करनेसे अनन्तमें भाग ऊरण ( न्यून ) हैं.
बेइन्द्रियमें औदारिक शरीरके दो भेद हैं। बंधेलगा और मूकेलगा. जिसमें बन्धलगा असंख्याने हैं। कालसे-असंख्याती उत्सर्पिणी अवसर्पिणी । क्षेत्रसे-सातराजका धनचौतरा कराना जिसके श्रेणी परतरके असंख्यातमें भाग जिसका विषमसूचि असंख्याता कोडाकोडी योजन क्षेत्र लीजे उसमें आकाशप्रदेश आवे उनको वर्गमूल कीजे।जैसे ६५५३६ का वर्गमूल २५६ और २५६ का वर्गमूल १६ और इसका वर्ग ४ इसका २। सर्व वर्गमूलोंको इकठा करनेसे २७८ प्रहेश होते हैं। इतनी २ जगह एकेक बेइन्द्रियको रखते २ सम्पूर्ण परतर भर जाय और मूलगा समुचयवत् इसी माफक तेजस कार्मणका बंधेलगा मूलगा भी समझना ।
बीन्द्रियमें वैक्रीय आहारकका बंधेलगा नहीं हैं । मुलगा समुचयवत् एवं तीन्द्रियय, चौरिन्द्रिय और तिर्यचपंचेंद्रिय भी समझना, परन्तु तियंचपंचेन्द्रियमें वैक्रीय शरीरका बंधेलगा भुवनपतिकी माफक तथा क्षेत्रके वर्गमूल में १६ प्रदेश आया था जिसके असंख्यानमें भाग तिर्यचपंचेन्द्रियमें वैक्रीय शरीरका बंधेलगा हैं । शेषाधिकार बीसिद्रियवत्.
मनुष्यमें औदारिक शरीरका दो भेद है-बंधेलगा और मूकेलगा। जिसमें औदारिक शरीरका बंधेलगा स्यात् संख्याते स्यात् भसंख्याते कारण मनुष्य संक्षी संख्याते है और असंज्ञी भसंख्याते। जो संख्याते हैं वे तीजा जमल परतरके ऊपर भोर चौथा जमन