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(७५) मुकेलगे समुचयकी माफक अनन्ते हैं । वैक्रिय शरीरका दो में हैं (१) बन्धेलगा (२) मूकेलगा जिसमें बन्धेलगे असंख्याते हैं। कालसे-असंख्याती अवसर्पिणी उत्सर्पिणी, क्षेत्रसे-७ घनराजण चौतरा कीजे जिसमें विषम सूची अंगुल क्षेत्र लीजे, उसमें पान काशप्रदेश आवे जिसमें २५६ प्रदेश आते हैं। एकेक जोतिषीके बैठने के लिये जगह दी जावे तो संपूर्ण परतर भर जाये इतना वैक्रिय शरीरका बन्धलगे हैं। मुकेलगे अनन्ते समुचयवत् । तेजस कार्मणका बन्धेलगा मुकेलगा वैक्रियकी माफक,
वैमानिक देवोंमें औदारिक आहारिक के बन्धेलगे नहीं है और मुकेलगे अनंते समुचयवत् । वैक्रिय शरीरका बन्धेलगे असंख्याते हैं। कालसे-असंख्याती अवसर्पिणी उत्सर्पिणी, क्षेत्रसे७ धनराजके परतर श्रेणीमेसे विषम सूची अंगुल क्षेत्र लीजे जिसमें प्राकाशप्रदेश आवे जैसे २५६ जिसका विर्गमूल कीजे सो प्रथम १६-४-२ । दूजा और तीजेका गुणा करनेसे । प्रदेश आते हैं इतना (असं० ) वैक्रियका बन्धेलगे हैं। मुकेलगे अनन्ते समुचयवत् । एवं तेजस कार्मण भी समझना । इति ।
सेवं भंते सेवं भंते तमेव सच्चम् ।
__ थोकडा नं. १४८ श्री पन्नवणासूत्र पद १३
( परिणाम पद) जिस परिणतीपने प्रणमें उसे परिणाम कहते हैं। जैसे