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(५) पस्तरके अन्दर (जमल परतरके पाठ अंक होते हैं) अर्थात् २९ अंक जितने संज्ञी मनुष्य हैं-७९२२८१६२५१४२६४३३७. ५६३५४३९५०३३६ इतनी संख्याके मनुष्य हैं अथवा १ को बिमव (९६) बारगुणा करे इतना मनुष्य है और जो असंस्वाते औदारिक हैं वे कालसे असंख्याती उत्सर्पिणी, अवसर्पिणी और चत्रसे लोकका धन चौतरा कीजे जिसके एक आकाशकी श्रेणी परतर जिसमें आकाशप्रदेशकी असत्य कल्पना ६५५३६ जिसका वर्गमूल-२५६-१६-४-२ दूजेको चौथेसे गुणा करनेसे ३२ प्रदेशप्रमाण एकेक मनुष्यको बैठनेके लिये स्थान दे तो सम्पूर्ण परतर भर जाय, परन्तु एक रूप कम रहे। मुलगा समुचयवत् । इसी माफक तेजस कार्मण भी समझना । वैक्रिय शरीरका बंधेलगा स्यात् मिले स्यात् न मिले अगर मिले तो संख्याते मिले क्योंकि संज्ञी मनुष्य ही वैक्रिय करते हैं। मूलगा समुचयवत् । पाहारिकका बंधेलगा स्यात् मिले स्यात् न मिले अगर मिले तो सख्याते मिले और मुकेलगा समुचयवत् । ___ व्यंतर देवतामें औदारिक और पाहारिक बन्धेलगा नहीं हैं और मुकेलगा समुचयवत् । वैक्रियके बन्धेलगा असंख्याते हैं। कालसे-असंख्याती अवसर्पिणी, उत्सर्पिणी, क्षेत्रसे-७ राजकाचौतरा कीजे श्रेणी परतरसे विषम सूचि अंगुल क्षेत्र लाजे जिसमें संख्याते सौयोजन ( तीन सौ योजन ) का क्षेत्र एकेक व्यंतरको बैठनेके लिये जगह दी जावे तो सम्पूर्ण परतर भर जावे । मुकेलगा समुचय माफक अनंते, तेजस कार्मण वैक्रियकी माफक । * ज्योतिषीमें औदारिक माहारिकके बन्धलगे नहीं है और