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. (५) अनंत प्रदेशी परिमंडल संस्थान असंख्यात प्रदेश भवगायोंकी तीनों अल्पाबहुत्व रत्नप्रभावत् परन्तु संक्रमण अनंतगुणा कहना एवं यावत् पायतन संस्थान भी कहना ।
सेवं भंते सेवं भंते तमेव सच्चम् ।
थोकडा नं० १४६ श्री पन्नवणा सूत्र पद १०
(चर्माचर्म) द्वार-(१) गति (२) स्थिति (३) भव (३) भाषा (५) श्वासोश्वास (६) आहार (७) भाव (८) वर्ण (९) गंध (१०) रस (११) स्पर्श। . (१) हे भगवान् ! एक जीव गतिकी अपेक्षा क्या धर्म है या प्रचर्म है ? स्यात् चर्म है स्यात् अचर्म है अर्थात् जिन्हों जीवोंको तदभव मोक्ष जाना है वे गतिकी अपेक्षा चरम हैं कारण वे जीव भब फिर गतिमें न भावेंगे और जिसको अभी मोक्ष जाने में देरी है या न जावेगा वे गतिकी अपेक्षा अचर्म है कारण वारंवार गतिमें भ्रमण करेगा। ____नारकीके नेरीया गतिकी अपेक्षा चर्म है या । .अर्म है ? स्यात् चर्म स्यात् प्रचर्म भावना उपरवत् इसी माफिक २४ दंडक यावत् वैमानिक तक कहा।
घणा जीवकी अपेक्षा क्या चर्म है या अचर्म है ? धर्म भी घणा भधर्म भी घणा एवं यावत् २४ दंडक समजना ।