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इमं च मे अस्थि इमं च नथि, इमं च मे किच्चं इमं अकिच्चं तं एवमेव लालप्पमाणं, हरा हरंति त्ति कहं पमाए ?
यह मेरे पास है और यह नहीं है, यह मुझे करना है और नहीं करना हैइस प्रकार वृथा बकवास करते हुए पुरुष को उठानेवाला ( काल ) उठा लेता है । इस स्थिति में प्रमाद कैसे किया जाय ?
-उत्तराध्ययन (१४/१५) सीतंति सुवंताणं अत्था पुरिसाण लोगसारत्था ।
तम्हा जागरमाणा, विधुणध पोराणयं कम्मं ॥ जो पुरुष सोते हैं उनके जगत में सारभूत अर्थ नष्ट हो जाते हैं। अतः सतत जागते रहकर पूर्वार्जित कर्मों को नष्ट करो।
-बृहत्कल्पभाष्य ( ३३८३) जागरिया धम्मीणं, अहम्मीणं च सुत्तया सेया । धार्मिकों का जागना श्रेयस्कर है और अधार्मिकों का सोना श्रेयस्कर है ।
-वृहत्कल्पभाष्य (३३८६ )
जागरह नरा ! णिच्चं, जागरमाणस्सवड्ढते बुद्धी ।
सो सुवति ण सो धन्नो, जो जग्गति सो सया धन्नो॥ पुरुषों ! नित्य जागृत रहो। जागत व्यक्ति की बुद्धि बढ़ती है। जो सोता है वह धन्य नहीं है । धन्य वह है, जो सदैव जागता है ।
-वृहत्कल्पभाष्य ( ३३८२)
आदाणे णिक्खेवे, वोसिरणे ठाणगमणसयणेसु।
सम्वत्थ अप्पमत्तो, दयावरो होदु हु अहिंसओ॥ वस्तुओं को उठाने-धरने में, मल-मूत्र का विसर्जन करने में, बैठने और चलने-फिरने में और शयन करने में जो दयालु पुरुष सदा अप्रमादी रहता है, वह निश्चय ही अहिंसक है ।
-भगवतीआराधना (८१८)
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