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नो सुलहा सुगई य पेच्चाओ ।
मृत्यु के पश्चात् सद्गति सुलभ नहीं है ।
मा
पच्छ असाधुताभवे, अच्चे ही अणुसास अप्पगं ।
भविष्य में तुम्हें कष्ट न भोगना पड़े, इसलिए अभी से अपने को विषय
वासना से दूर रख कर अनुशासित करो ।
-सूत्रकृताङ्ग ( १/२/१/३ )
सुवइ य अजगर भूतो, सुर्यपि से णासती होहिति गोणभूयो, णट्ठमि सुये
जो अजगर के सदृश सोया रहता है, उसका अमृत स्वरूप ज्ञान क्षीण हो जाता है और अमृत स्वरूप ज्ञान के क्षीण होने पर इन्सान एक प्रकार से निरा बैल बन जाता है ।
करो ।
-सूत्रकृताङ्ग ( १/२/३/७ )
अमयभूयं । अमयभूये ॥
वओ अच्चेति जोव्वणं च । अवस्था और यौवन प्रतिक्षण बीता जा रहा है ।
"
- निशीथभाष्य ( ५३०५ )
मोक्खपहे अप्पाणं ठवेहि तं चेव झाहि तं चेव । तत्थेव विहर णिच्च मा विहरसु अन्नदव्वे ॥
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ओ भव्य ! तू मोक्षमार्ग में ही आत्मा को स्थापित कर उसी का ध्यान उसी का अनुभव कर और उसी में विहार कर । अन्य द्रव्यों में विचरण
घर,
मत कर ।
जीवन-धागा टूट जाने पर पुनः जुड़ नहीं सकता ।
- आचारांग ( १ / २ / १ )
असंखयं जीविय मा पमायए ।
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- समयसार ( ४१२ )
इसलिए प्रमाद मत
उत्तराध्ययन (४/१ )
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