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श्रद्धा अदक्खु, व दक्खुवाहियं सद्दहसु । ओ देखने वालो ! तुम देखने वालों की बात पर विश्वास और श्रद्धा करके चलो।
-सूत्रकृताङ्ग ( २/३/११) जं सक्कइ तं कीरइ, जं च ण सक्का तं च सद्दहणं।
केवलिजिणेहि भणियं, सद्दहमाणस्स सम्मत्तं ॥ यदि समर्थ हो तो संयम, तप आदि का पालन करो और यदि समर्थन हो तो केवल तत्त्वों की श्रद्धा ही करो, क्योंकि श्रद्धावान् को सम्यक्त्व होता है, ऐसा केवली भगवान ने कहा है ।।
-दर्शनपाहुड़ (२२) जाए सद्धाए निक्खंते तमेव अणुपालेजा,
विजहित्ता विसोत्तियं ॥ जिस श्रद्धा के साथ निष्क्रमण किया है, उसी श्रद्धा के साथ शंकाओं या कुण्ठाओं से दूर रहकर, उसका पालन करो।
-आचाराङ्ग ( १/१/३) सद्धा परमदुल्लहा। श्रद्धा होना परम दुर्लभ है।
-उत्तराध्ययन (३/९) लक्षूण वि उत्तमं सुई।
सद्दहणां पुणरावि दुल्लहा ॥ उत्तम वचनों का श्रवण करके भी उस पर श्रद्धा होना अति कठिन है।
-उत्तराध्ययन (१०/१६) सद्धा खमं णे विणइत्तु रागं। धर्म-श्रद्धा हमें राग से छुटकारा दे सकती है ।
-उत्तराध्ययन (१४/२८) २५२ ]
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