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संकेज्ज याऽसंकित भाव भिक्खु विभज्जवाय
च
वियागरेज्जा |
भासादुगं
धम्मसमुह, वियागरेज्जा समया, सुन्ने ।
सूत्र और अर्थ के विषय में शंका- रहित साधु भी गर्व रहित होकर स्याद्वादमय वचन का व्यवहार करे । धर्माचरण में प्रवृत्त साधुओं के साथ विचरण करते हुए सत्यभाषा तथा अनुभय ( जो न सत्य हो और न असत्य ) भाषा का व्यवहार करे । धनी या निर्धन का भेद न करके समभाव पूर्वक धर्मकथा कहे । - सूत्रकृताङ्ग ( १/१४/२२ )
अलद्ध कण्हुई ।
कामी कामे न कामए, लद्ध वावि साधक सुखाभिलाषी होकर काम-भोगों की इच्छा न करे, प्राप्त भोगों को भी प्राप्त जैसा कर दे । - सूत्रकृतांग ( १/२/३/६ )
संमत्तदंसणाई, पइदियहं जइजणा सुणेई य । सामायारिं परमं जो, खलु तं सावगं बिति ॥
जो सम्यग्दृष्टि व्यक्ति प्रतिदिन यति - ( साधु ) जन से आचार विषयक उपदेश, परम समाचारी श्रवण करता है, उसे श्रावक कहते हैं ।
- सावयपण्णत्ति ( २ )
पंचुंबर सहियाई सत्त वि विसणाई जो सम्मत्तविसुद्ध मई, सो दंसणसावओ
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श्रावकधर्म
२
जिसकी मति सम्यग्दर्शन से विशुद्ध हो गयी है, वह व्यक्ति पाँच उदुम्बर फल' के साथ-साथ सात व्यसनों ? का त्याग करने से ' दार्शनिक श्रावक' कहा गया है । - वसुनन्दि श्रावकाचार ( ५७ )
१. पांच उदुम्बरफल - उंबर, कठूमर, गूलर, पीपल, एवं बड़ ।
२. सप्तव्यसन - वेश्यागमन, जुआ, मांसाहार, मद्यपान, शिकार, परस्त्री गमन
और चोरी ।
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विवज्जेइ । भणिओ ॥
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